संस्थापक सप्ताह समारोह ‘‘ जो हठि राखे धर्म को तिहि राखे करतार ’’ ‘‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ’’
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महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के बारे में

भारत के स्वाधीनता संग्राम में बाल गंगाधर तिलक का युग समाप्त होते-होते कांग्रेस के नेतृत्व पर प्रश्न चिह्न खड़ा होने लगा था। १९२० के बाद क्रान्तिकारी आन्दोलन ने अलग राह पकडी और १९३०-३१ तक आते-आते कांग्रेस के स्पष्ट सहयोग के अभाव में क्रान्तिकारियों का दमन करने में ब्रिटिश हुकूमत सफल रही। १९१५-१६ के बाद के इसी काल खण्ड में स्वाधीनता संग्राम की अगुवा कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण की भी शिकार हुई। इस युग तक अंग्रेजों द्वारा भारत में अंग्रेजियत में रमे बाबुओं की फौज खडी करने की शिक्षा नीति का प्रभाव भी दिखने लगा था। देश के समक्ष एक चुनौती थी कि भारत की नयी पीढी भारतीयता के साँचे में कैसे ढले। अपनी संस्कृति और स्वदेशी दृष्टि से शिक्षा प्रणाली और शिक्षा नीति ही एक मात्र इस चुनौती का समाधान था। इस चुनौती को भी भारतीय मनीषियों ने स्वीकार किया।

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महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संस्थापक

शिक्षा के प्रसार को लोक जागरण और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का सशक्त माध्यम स्वीकार करते हुए ब्रह्मलीन पूज्य महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज ने शैक्षिक दृष्टि से अत्यन्त पिछड़े पूर्वी उत्तर प्रदेश के केन्द्र एवं अपनी कर्मस्थली गोरखपुर में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक की शिक्षण संस्थाओं को संचालित करने हेतु महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्‌ की १९३२ ई० में स्थापना कर शिक्षा क्षेत्र में अपनी अविस्मरणीय भूमिका की नींव रखी। वर्तमान में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्‌ के अन्तर्गत संचालित दो दर्जन से भी अधिक शिक्षण-संस्थाओं में २५ हजार से भी अधिक छात्रा-छात्रायें कला, विज्ञान, वाणिज्य, साहित्य और प्राविधिक विषयों में परम्परागत तथा आधुनिक विषयों की शिक्षा ले रहे हैं।

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महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संचारक

अपने वरेण्य गुरुदेव युगपुरुष महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज के बहुआयामी सपनों को साकार करने में निरन्तर संलग्न सामाजिक समरसता के उद्‌गाता, राष्ट्रवादी राजनीति के पुरोधा और अप्रतिम धर्मयोद्धा वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर श्री महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने सन्‌ १९३२ में गुरुदेव द्वारा स्थापित 'महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्‌' को अपनी निष्ठा, सुदीर्घकालीन तपस्या और अनुभव की पूँजी से उत्तरोत्तर समृद्ध और समुन्नत किया। आज शिक्षा-चिकित्सा के क्षेत्र में वट वृक्ष की भाँति प्रसरित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद राष्ट्रसन्त महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज की तपस्या का ही फल है।

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